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» »Unlabelled » मरते दम तक अंग्रेजों के हाथ नहीं आये थे ‘आजाद’

‘दुश्मनों की गोलियों का सामना हम करेंगे,
आजाद रहे हैं आजाद ही रहेंगे’

चंद्रशेखर आजाद की यह बात आज भी दिल में देशभक्ति जगा देती है. चंद्रशेखर आजाद भारत के वह क्रन्तिकारी थे, जिन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवाने का काम किया. क्रांतिकारी सोच के कारण वह हमेशा ब्रिटिशों के निशाने पर रहे. ‘काकोरी’ की लूट ने तो अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी. वह हाथ धोकर आजाद के पीछे पड़ गये थे. यह लूट अंग्रेजों को यह पैगाम देने में सफल रही कि भारतीय जवानों की रगों में खून दौड़ता है, पानी नहीं. तो चलिए इस लूट के पूरे घटनाक्रम पर नजर डालते हैं:

‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का गठन

चंद्रशेखर आजाद (www.uttamon.blogspot.in)छोटी उम्र से ही अंग्रेजों के बेबुनियाद कानूनोंं के खिलाफ थे. उनकी रगों में देश भक्ति का खून दौड़ रहा था. उनका मानना था कि अंग्रेजों का सामना करने के लिए देश के हर युवा को एकजुट हो जाना चाहिए. इसी क्रम में वह क्रांतिकारी बन गये. साथ ही अपने साथ कई सारे अन्य युवाओं को जोड़ने का काम भी किया. एक संगठन के रुप में उन्होंने काम करना शुरु कर दिया.

चंद्रशेखर तेजी से अंग्रेजों के प्रभाव का खत्म करना चाहते थे. इसके लिए उन्हें धन की आवश्यकता थी. धन ही विकल्प था, जिससे वह हथियार आदि खरीद सकते थे. शुरुआती दौर में उन्होंंने और उनके साथियों ने इस मुहिम में अपना सारा धन लगा दिया, लेकिन अब वह खत्म हो चुका था. इस कारण उनकी ताकत कम होती जा रही थी. ऊपर से महात्मा गांधी के  ‘असहयोग आंदोलन’ के कारण उस समय के युवा हिंसा से दूरी बनाने लगे थे.

जबकि, आजाद जैसे क्रन्तिकारियों का मानना था कि अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में समझाया जाना जरुरी है. वह अहिंसा की भाषा नहीं समझ सकते थे. इसी कड़ी में उन्होंंने ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ ( www.uttamon.blogspot.in) का गठन किया. यह संगठन क्रांतिकारी सोच वाले युवाओंं को अंग्रेजोंं के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करता था. इसके अलावा इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी भारत के सभी राज्यों में काम कर रहे क्रांतिकारियों को एक साथ लाना था, ताकि मजबूती के साथ अंग्रेजोंं का सामना किया जा सके. आजाद की यह पहल कारगर रही.

थोड़े ही समय बाद उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम करना शुरु कर दिया. क्रांतिकारियों का कुनबा बढ़ता जा रहा था. संगठन में क्रांतिकारियों की अच्छी खासी संख्या हो गई थी. अब जरुरुत थी धन जुटाने की, क्योंकि अंग्रेजों का सामना करने के लिए हथियार में इजाफे की आवश्यकता थी. धन जुटाने के कई सारे जुगाड़ किए, लेकिन फिर भी पर्याप्त धन नहीं जुटाया जा सका, तो उन्होंने अंग्रेजों को ही लूटने का प्लान बना डाला.

चलती ट्रेन लूटने का बना प्लान:-

अंग्रेजों को लूटा जायेगा, लेकिन कैसे? यह एक बड़ा सवाल था. सब जानते थे कि यह इतना आसान नहीं था. सभी अपने-अपने तरीके से लूट की योजनाएं बनाने लगे. इस दौरान राम प्रसाद बिस्मिल लखनऊ के आसपास एक ऐसी जगह तलाश कर रहे थे, जहां वह कुछ दिन अंग्रेजों की नजर से बचकर ठहर सकें. वह गोरखपुर के पास काकोरी रेलवे स्टेशन (www.uttamon.blogspot.in) पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने देखा कि एक ट्रेन में अंग्रेज अपना खजाना भरकर कहीं भेज रहे थे. खजाने की रक्षा के लिए ज्यादा सिपाही भी नहीं थे. बिस्मिल के दिमाग में तुरंत इस ट्रेन को लूटने का ख्याल आया. उन्होंंने इसको अंजाम देने के लिए इससे जुड़ी सारी जानकारियां इकट्ठी करनी शुरु कर दीं.

उन्होंंने काकोरी स्टेशन पर ही वक्त बिताना शुरु कर दिया, ताकि वह पता कर सकें कि इस लूट को कैसे अंजाम दिया जा सकता था. इस बीच वह लगातार सारी जानकारी आजाद और बाकी साथियों से साझा करते रहे. सभी को बिस्मिल का यह प्लान पसंद आया. जल्द ही इस काम को अंजाम देने की रणनीति बना ली गई. आजाद ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने साथ 10 साथियों (www.uttamon.blogspot.in) को चुना.

सारा प्लान तैयार किया जा चुका था. इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया कि इस लूट में किसी भी हिन्दुस्तानी मुसाफिर को किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए. उन्हें सिर्फ और सिर्फ लूट करनी थी. उनका प्लान फुल प्रूफ था. उन्हें देश की आज़ादी के लिए चुपके से लूट करनी थी और वहां से भाग जाना था.

ख़जाना लूटने में रहे सफल, मगर…

जल्दी ही जरुरी हथियारों का इंतजाम करते हुए आजाद अपने मिशन पर निकल पड़े. हर एक कदम प्लान के मुताबिक बढ़ाया जा रहा था. सब किसी भी तरह की चूक से बच रहे थे. वह सब यात्री बनके शाहजहांपुर से उस ट्रेन में सवार हो गये थे. ट्रेन शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए रवाना हुई. बिस्मिल ने अपनी तैयारी पूरी की हुई थी. वह जानते थे कि अंग्रेज की सुरक्षा कहां कमजोर थी. लूट के लिए ‘काकोरी’ को चुना गया था. काकोरी इसलिए क्योंकि वह सबसे मुफीद जगह थी, इस पूरे रुट में. यहां अंग्रेजों की सुरक्षा व्यवस्था भी ज्यादा टाइट नहीं थी. ट्रेन धीरे-धीरे काकोरी की तरफ बढ़ रही थी और आजाद अपने साथियों के साथ काकोरी पहुंचने का इंतजार कर रहे थे.

जैसे ही ट्रेन काकोरी (www.uttamon.blogspot.in) से गुजरी प्लान के मुताबिक ट्रेन की चेन खींच दी गई. चेन खींचते ही पल भर में सभी क्रांतिकारी वहां से बाहर निकल गये. ताकि, अंग्रेजोंं के सुरक्षाकर्मियों से निपटा जा सके. ट्रेन की चेन किसने खींची यह देखने के लिए कुछ लोग बाहर आए. उन्हें आते देख इन सभी ने उन पर हमला किया और बंदूक की नोक पर उन्हें रोके रखा. चंद्रशेखर आजाद और उनके कुछ साथी ट्रेन के उस डिब्बे के पास गए जहां अंग्रेजी खजाने का बक्सा रखा हुआ था. वहां पर भी कुछ एक सिपाही थे, लेकिन आजाद ने उन्हें अपने रास्ते से हटा दिया.

देर न करते हुए खजाने के बक्से को अपने कब्जे में ले लिया गया. चूंकि बक्सा बहुत बड़ा था इसलिए उसको साथ लेकर भागना मुश्किल था. उन्होंने फौरन उस बक्से का ताला तोड़ दिया. सभी ने मिलकर जल्दी-जल्दी सारे पैसे अपने कब्जे में ले लिए. इस लूट में लगभग 8000 रूपए क्रांतिकारियों को मिले थे, वह
 लूट को अंजाम देकर वहां से निकल ही रहे थे कि किसी कारणवश एक क्रांतिकारी को गोली चलानी पड़ी. इसमें एक यात्री की मौत हो गई थी. अब उनका वहां रुकना खतरे से खाली नहीं था. वह तुरंत भाग निकले.

अगली सुबह उनके लिए वैसी नहीं थी जैसी उन्होंने सोची थी. चोरी के अगले ही दिन से अंग्रेज उन्हें पागल कुत्तोंं की तरह ढूंढने लगे. हर तरफ इन लोगों की तलाश हो रही थी. क्रांतिकारियों ने तय किया कि वह कुछ दिनों के लिए इधर-उधर हो जाएं और सही मौके का तलाश करें इकट्ठा होने के लिए.


इस लूट के बाद खासतौर पर ‘आजाद’ का नाम काफी फ़ैल चुका था. अंग्रेज उन्हें किसी भी कीमत पर पकड़ना चाहते थे. पर आजाद कहां पकड़ में आने वाले थे. उनके साथी उन्हें सचेत रहने के लिए कहते थे. वह जानते थे कि उन्हें खतरा है, लेकिन उन्होंने तय कर लिया था कि वह कम से कम जिंदा तो नहीं पकड़े जायेंगे (www.uttamon.blogspot.in). वह पुलिस को गुमराह करते हुए इधर-उधर आते-जाते रहे. जितनी ज्यादा दूरी मुमकिन थी, उतनी उन्होंने अंग्रेजों से बना के रखी. इधर अंग्रेज राम प्रसाद बिस्मिल समेत कई अन्य साथियों को हिरासत में ले चुके थे. इन पकड़े गये साथियों पर ढ़ेर सारे जुल्म शुरु कर दिए गये. अंग्रेज चाहते थे कि वह अपने साथियोंं का ठिकाना बता दें ताकि, आजाद के साथ सभी बचे हुए क्रांतिकारियों को पकड़ा जा सके. अपनी इस सोच में अंग्रेज सफल नहीं हुए.

अंतत: गुस्से में आकर उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल समेत कुछ क्रांतिकारियों को मौत दे दी और बाकियों को उम्रकैद. आजाद (www.uttamon.blogspot.in) फिर भी आजाद ही रहे. वह अभी तक पुलिस के हाथ पकड़े नहीं गए थे. कुछ समय बाद किसी गुप्त सूचना के तहत वह अंग्रेजों द्वारा चारों तरफ से एक पार्क में घेर लिए गये थे. अंग्रेजों ने उन्हें हथियार डालकर गिरफ्तार हो जाने को कहा. वह नहीं माने और अंग्रेजों से लड़ते रहे. उनके पास अब एक ही गोली बची हुई थी. उन्हें लगा कि अब वह पकड़े जायेंगे, तो उन्होंने बची हुई गोली से खुद को खत्म कर लिया.


‘आजाद’ देश के लिए शहीद हो गये, लेकिन उन्होंने क्रांतिकारियों में क्रांति की ज्वाला को भड़काने का काम किया. उनका ‘काकोरी कांड’ उस समय के क्रांतिकारियोंं के लिए एक मिसाल बन गया था. वह उसे एक प्रेरणा के रुप में लेने लगे. नमन है आजाद और उनके साथियों के बलिदान को, जिन्होंने देश पर मर मिटने के लिए एक बार भी संकोच नहीं किया.

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1 comments:

  1. आप बताना भूल गए कि आजाद के पास जितनी गोलियां थी, उस मुठभेड़ में उससे (गोलियों की संख्या से) केवल एक ही अंग्रेज कम मरा था।

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