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‘पाक को लाहौर इसलिए दे दिया ताकि उनके पास कोई तो ढंग का शहर हो'

''मैंने तो लाहौर भारत को दे दिया था, लेकिन तभी मुझे अहसास हुआ कि पाकिस्तान के पास कोई बड़ा शहर नहीं है। मैं कलकत्ता पहले ही भारत को दे चुका था। मुझे लाहौर पाकिस्तान को देना पड़ा।''



ये कहना था भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की लाइन खींचने वाले सिरील रेडक्लिफ का। लॉर्ड माउंटबेटन ने रेडक्लिफ को बाउंड्री कमीशन का चेयरमैन बनाया था। उन पर ही सीमा रेखा खींचने की पूरी जिम्मेदारी थी। रेडक्लिफ ने लाहौर के किस्से के बारे में एक इंटरव्यू में इसका जिक्र किया था। बंटवारे के ऐसे ही कई किस्से हैं (www.uttamon.blogspot.in)

किस्सा नं. 1
पाकिस्तान को एक बड़ा शहर देना था इसलिए लाहौर दे दिया:-

लाहौर को पाकिस्तान में देने का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है। लाहौर में हिंदू और सिख कम्युनिटी के लोग और उनकी प्रॉपर्टी ज्यादा संख्या में थी। इसके बावजूद ये शहर पाक को सिर्फ इसलिए दे दिया गया, क्योंकि उसके पास कोई बड़ा शहर नहीं था। भारत में बंटवारे की लकीर खींचने वाले रेडक्लिफ ने अपने एक इंटरव्यू में ये बात बताई थी। उन्होंने कहा था कि उनके पास इसके सिवा कोई विकल्प ही नहीं था।



'पाकिस्तानियों को शुक्रगुजार होना चाहिए'
मुस्लिमों से भेदभाव के आरोप पर भी रेडक्लिफ ने कहा था, "पाकिस्तानियों को मेरा शुक्रगुजार होना चाहिए, क्योंकि मैंने तर्कों से हटकर उन्हें लाहौर सौंप दिया, जो भारत का हिस्सा होना चाहिए था। बंटवारा करने में मैंने हिंदुओं से ज्यादा मुस्लिमों का पक्ष लिया।"



(सोर्स- जर्नलिस्ट कुलदीप नय्यर की किताब  'स्कूप, इनसाइड स्टोरीज फ्रॉम पार्टिशन टू द प्रेजेंट', किताब 'द पार्टीशन ऑफ इंडिया एंड माउंटबेटन'और  न्यूज आर्टिकल के अंश।)


किस्सा नं. - 2
मुस्लिम मेंबर ने छुट्टियां मनाने के लिए मांगा था दार्जिलिंग:-



दार्जिलिंग भारत के मशहूर टूरिस्ट प्लेसेस में से है। बाउंड्री कमीशन का एक मुस्लिम मेंबर इसे पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहता था। बाउंड्री कमीशन के चेयरमैन रेडक्लिफ ने बताया था कि बंगाल से आने वाले एक मुस्लिम मेंबर ने अकेले में ले जाकर उनसे इस बारे में बात भी की थी। मेंबर ने कहा था, ''मैं और मेरी फैमिली हर साल गर्मियों में छुट्टियां मनाने दार्जिलिंग जाते हैं। ऐसे में, अगर दार्जिलिंग भारत के हिस्से में चला गया, तो वहां जाना बड़ा मुश्किल हो जाएगा।''

किस्सा नं.- 3

ऐन वक्त पर भारत के हिस्से में आ गया फिरोजपुर शहर:-


बंटवारे में पंजाब का कौन-सा हिस्सा भारत में रहेगा और कौन-सा पाकिस्तान के हिस्से में जाएगा, ये रेडक्लिफ तय कर चुके थे। उन्होंने हिंदुस्तान के नक्शे पर बंटवारे की लकीर भी खींच दी थी, लेकिन माउंटबेटन के दबाव में उन्हें ये फैसला बदलना पड़ा था। माउंटबेटन ने उन्हें खाने पर इनवाइट किया था। यहां खाने की मेज पर कई जगहें इधर से उधर कर दी गईं। इनमें फिरोजपुर जिला और जार तहसील भी शामिल थे, जो ऐन वक्त पर पाकिस्तान से भारत के हिस्से में आ गए थे। माउंटबेटन नेहरू के दबाव में आ गए थे और उनके कहने पर ही रेडक्लिफ को फिरोजपुर भारत को देना पड़ा था।

किस्सा नं. - 4
ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगा दीमक लगा पाकिस्तान:-

जिन्ना ने जब मुस्लिमों के लिए अलग देश पाकिस्तान की डिमांड रखी थी, तब माउंटबेटन ने उन्हें आगाह किया था कि तुम्हें अपंग, बिखरा हुआ और दीमक लगा पाकिस्तान मिलेगा, जो ज्यादा समय तक नहीं टिक पाएगा। दरअसल, लाहौर रेजोल्यूशन के मुताबिक, मुस्लिम लीग पंजाब और बंगाल में आने वाले किसी भी मुस्लिम जोन की डिमांड नहीं कर सकती थी, ये दोनों दलों के समर्थन पर ही निर्भर था। ऐसे में, जिन्ना के चाहने से उन्हें कुछ नहीं मिलना था। बंटवारे से नाखुश जिन्ना ने माउंटबेटन को गुस्से में ये तक कह दिया था कि मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप मुझे कितना बड़ा या छोटा हिस्सा देंगे, लेकिन जो भी हिस्सा होगा वो मेरा अपना होगा।

किस्सा नं.- 5
बंटवारे से पहले महिंद्रा एंड मोहम्मद थी महिंद्रा कंपनी:-

भारत की बड़ी कंपनियों में से एक महिंद्रा एंड महिंद्रा का भी आजादी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है। 1945 में जब इस (www.uttamon.blogspot.in)कंपनी ने लुधियाना में स्टील ट्रेडिंग कंपनी शुरू की थी, तब कंपनी में जेसी महिंद्रा और केसी महिंद्रा भाइयों के साथ एक पार्टनर गुलाम मोहम्मद भी हुआ करते थे। ( वहीं, कंपनी का नाम महिंद्रा एंड महिंद्रा की जगह महिंद्रा एंड मोहम्मद था। 1947 में जब बंटवारा हुआ, तो गुलाम मोहम्मद पाकिस्तान चले गए और वहां की कैबिनेट का हिस्सा बने। ऐसे में, बाद में कंपनी का नाम बदलकर महिंद्रा एंड महिंद्रा कर दिया गया।

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